Friday, November 23, 2007

महाशक्ति पर सुनील दीपक जी की टिप्पणी क्या सही है?

आज महाशक्ति पर यह पोस्ट पढ़्ने को मिली। जिस पर सुनील जी की टिप्पणी भी पढनें को मिली। दूसरी पोस्ट मे महाशक्ति जी, द्वारा लिखी यह पोस्ट वरिष्‍ठ चिट्ठाकारों से एक अनुरोध पढ़्नें को मिली।

सुनील जी ने प्रमाण स्वरूप गुरु नानक देव जी की मक्का वाली घटना का जिक्र किया है। यहाँ कहना चाहूँगा। कि प्रमाण वही देने का हकदार होता है जो उसे साबित कर सके। गुरू नानक देव जी ने इसे, उस समय इस बात को साबित कर के बताया था। लेकिन क्या हम आज यह साबित कर सकते हैं? हम में वह सामर्था है जो गुरू नानक देव जी में थी ?
सुनील जी आप की बात प्रमाणिक होते हुए भी हमें यह हक नही बनता की हम किसी द्वारा किया गया धार्मिक अपमान को सही ठहराएं। प्रमाण तो इस बात का भी सिख इतिहास में मिलता है कि गुरू नानक देव जी नें जनेऊ पहननें का भी खंडन किया था। लेकिन बाद में उसी जनेऊ को बचानें के लिए सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरू तेगबहादुर जी नें अपनें पाँच सिखों सहित अपना बलिदान देकर औरगंजेब के जुल्म का विरोध किया था। जो इस बात की गवाही देता है कि यह बात ठीक है कि वे उस जनेऊ धारण करने की बात का खंडन करते है। ,लेकिन दूसरी ओर जबरद्स्ती दूसरों को किसी के धर्म का अपमान करनें का भी हक में, वे भी कभी नही थे।

इस लिए यदि हिन्दू धर्म में इस बात को अपमान माना जाता है तो इस का विरोध तो करना ही चाहिए। एक बात और कहना चाहूँगा हम और आप आज ऐसे वातवरण में जी रहे हैं जहाँ प्रपंचों का बोलबाला है। ऐसे में किसी धर्म से छेड़छाड़ या अपमान करना,आग में घी दालनें के समान है।आप की बात को एक लघु-कथा कह कर समाप्त करता हूँ। आशा है आप मेरी बात को समझने की कोशिश करेगें इसे अन्यथा नही लेगें।
लघु -कथा
एक बार एक महात्मा एक ऐसे घर पर गए जो मूर्ति पूजा में बिल्कुल आस्था नही रखता था। जब महात्मा जी ने उसे इस बारे में समझानें की कोशिश की तो उसनें स्पष्ट कहा कि वह मूरति-पूजा को सही नही मानता क्योंकि प्रभू तो कण-कण में समाया है। इस पर उन महात्मा नें उस से उस के स्वर्गीय पिता की फोटों लाने को कहा। जब वह अपने पिता की फोटो ले आया तो उन महात्मा ने उसे पीक- दान(जिसमें पान खानें के बाद थूक को थूका जाताहै) के भीतर लगा दिया। और पान खा कर लगे उस में थूकनें।...यह देख वह इंसान जो अब तक मूरति पूजा का खंडन कर रहा था आग-बबूला हो गया। इस पर उस महात्मा नें समझाया कि तुम भले ही मूर्ति पूजा को ना मानों...लेकिन जब आप किसी पर आस्था रखते हैं तो उस के साथ कोई छेड़्छाड़ या अपमान करें तो ऐसे ही तकलीफ होती है।आशा है सुनील झी मेरी बात का आश्य अवश्य समझ गर होगें। यह कहनें के लिए मुझे बाध्य होना पड़ा,उस के लिए यदि कोई आहत हुआ हो या किसी को दुख पहुँचा हो तो क्षमा चाहूँगा।

5 comments:

  1. नमस्कार आप सब को, मे दीपक जी की बात से सहमत हु,हम लोग धर्म के नाम पर मरने मारने पर उतर आते हे,**मे हिन्दु हु,वो मुस्लिम हे यह इसाई हे... वगेरा वगेरा.. फ़िर हम बोलते हे भगबान एक हे उस के नाम अनेक हे** फ़िर आस्था की बात करते हे. यह सब ठीक हे. लेकिन मेने बहुत ही कम लोग देखे हे,जो उस भगबान मे सही आस्था रखता हो,धर्मिक पुस्तके मुर्तिया,चित्र तो हमारे बुजुर्गो ने ही बानये हे, लेकिन कभी भी मेने लोगो को (गीता, रामयणा,या दुसरे धर्म बालो को ) धर्म गन्र्थॊ के अनुसार चलते नही देखा,बल्कि इन के बिरुध चलते देखा हे...
    उदाहरण के तोर पर कोइ आपने मा बाप की तो जीते जी इज्जत ना करे, लेकिन उन के मरने पर रोजना उन के चित्र पर फ़ुलमाला चढे.इसे आप लोग कया कहेगे, ***हम भागवान को तो दिल से मानते हे,लेकिन उस का कहना नही मानते**** जिस दिन उस के कहे अनुसार चलेगे उस दिन से दुनिया मे शान्ति होगी
    Raj Bhatia

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  2. परमजीत जी
    मैं आपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हूँ । हम सबकी अपनी-अपनी धार्मिक भावनाएँ तथा विश्वास हैं किन्तु सम्पूर्ण रूप से हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं । किसी का भी अपमान ना कर सकते हैं और ना ही सहन करेंगें। इतनी सुन्दर सोच रखने के लिए बहुत-बहुत बधाई

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  3. परमजीत जी,
    आपने अपनी बात को बिना क्रोध किये बहुत सुलझे और परिपक्व तरीके सा समझाया है, साधुवाद!

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