Thursday, April 9, 2009

आखिर ये जूता क्यों चला..............


जरनैल सिहँ के जूता-कांड के बाद राजनीति मे एक जबर्दस्त उबाल -सा गया है।पता नही अभी यह कितने दिनों तक गर्म रहेगा।ब्लोग जगत में इस को लेकर बहुत ज्यादा चर्चा शुरू हो गई है\इन ब्लोगों को पढ़ कर मन मेकई विचार उठे। उन में से कुछ आप के साथ शेयर करने को मन हुआ।यह जरूरी नहीं है कि आप भी इन से सहमत हों।

जब भी कोई न्याय की बात करता है तो उसे यह जतानें वाले बहुत से सामने जाते हैं कि पहले जब तुम्हारे लोगों ने किसी पर अत्याचार किया था या ज्यादती की थी।उस समय यह आक्रोश क्यूँ नही दिखाया ? तब यह जूता क्युं नही चलाया गया ? लेकिन शायद वे पूछनें वाले यह विचारनें की जहमत नही उठाते कि यदि इन प्रश्नों का उत्तर किसी के पास होता तो यह सब होता ही क्यु ? ऐसे मे हम समस्या का हल खोजने की बजाय आरोपों प्रत्यारोपों के मकड़ जाल मे उलझ कर रह जाते हैं और असल समस्या का रूप और अधिक घिनौंना हो कर हमें दिखाई देनें लगता है। जब कि होना तो यह चाहिए कि इन प्रश्नों का उत्तर आम लोगों से पूछनें की बजाय उन तथा कथित नेताओं से पूछना चाहिए कि जब-जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो वे ईमानदारी से देश हित में निष्पक्ष कार्यवाही क्यों नही करते ? वे क्यों ऐसे समय में अपने लोगों को बचाने में (वोटों की खातिर) लग जाते हैं ? यह सब तो इन्हीं का पैदा किया हुआ है यदि वे इस बात का जवाब ईमानदारी से दे दें तो कोई ना कोई रास्ता जरूर निकल सकता है।जिस के द्वारा ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा।लेकिन लगता नही कि कोई इतना हिम्मत वाला ईमानदार नेता आज हमारे देश में है, या कभी निकट भविष्य में पैदा हो पाएगा। जो मज़हब की राजनिति ना करके,वोट की राजनिति ना करके, सिर्फ देश के हित का ध्यान रखते हुए,निषपक्षता से कदम उठानें कि हिम्मत कर सकेगा।यदि आज एक भी पार्टी जिसे सरकार बनाने का मौका देश की जनता देती है वह ऐसी हिम्मत कर के एक बार सही ईमानदारी से सभी को निष्पक्ष न्याय दिलानें में अग्रसर हो जाए तो देश के चरित्र का कायाकल्प हो जाएगा।यह उठाया गया कदम एक ऐसी हवा पैदा करने में कामयाब हो जाएगा। जिस से अपराधी भ्रष्ट राजनिति करने वाले अपने को बदलनें के लिए मजबूर हो जाएगें।लेकिन फिर वही सवाल उठता है कि यह पहल आखिर करेगा कौन ?

यदि ऐसा नही हो पाएगा तो कैसे ऐसी घटनाओं को कोई रोक सकेगा ? ऐसी घटनाओ से कैसे बचा जा सकेगा ? किसी को न्याय के लिए आवाज उठानें से कैसे रोका जा सकेगा? जब न्याय नही मिलेगा तो आम आदमी हताशा में या तो अपने सिर पर जूता मारेगा या फिर ...जिम्मेवार व्यक्तियों के.... जिम्मेवार सरकारें कमेटीयों का झुंनझुना पकड़ा कर मामले को इतना लटका देती हैं की,न्याय की उम्मीद ही मर जाती है।

दूसरी ओर हम वोट के अपने अधिकार को उपयोग करके सही लोगों को चुननें पर बहुत जोर देते हैं कि शायद ऐसा करने से देश को सही दिशा मिल सकेगी। हमारे में से बहुत से मतदाता सही व्यक्ति को जितानें के उद्देश्य से वोट भी डालते हैं।लेकिन जब दूसरी ओर जाति वाद के ,धर्म के आधार पर,अपने निहित राजनैतिक स्वार्थो के हित का ध्यान रखते हुए वोट डालने वाले अधिक हो, वहाँ आप और हमारे जैसे वोट डालने वाले की वोट कौन-सा इंकलाब ला सकेगी ?
एक बात यह हो सकती है, यदि देश के सभी राजनैतिक दल मिल कर यह तय करले कि पार्टीयों को सीटें मतदाताओं के मिले मतदानों के प्रतिशत के आधार पर मिलेगी तो शायद कुछ बेहतर परिणाम देश के हित मे सकेगें।जिस पार्टी को जिस राज्य में जितनें प्रतिश्त मत प्राप्त हो उसे उतनी ही भागीदारी सरकार को चलाने में दी जाए।तब शायद देश का कुछ भला हो सकेगा। नही तो ये जोड़ तोड़ की राजनिति करने वाले हमारे नेता, देश के मतदाताओं से ऐसे ही धोखा करते रहेगें।मतदाता वोट देता है किसी की नितियों का विरोध करने के लिए,लेकिन ये पार्टीयां उसी पार्टी से साँठ-गाठ करके हमारे विरोध की धज्जियां उड़ा देती हैं।इस से बचने का यही एक तरीका हो सकता है।कि पाए गए कुल मतों के आधार पर पार्टी को सीटे दी जाएं।ऐसी एक आचार संहिता बनाने की आज बहुत जरूरत है। तभी हमारे दिए गए मत की कोई कीमत लगाई जा सकेगी।नही तो हमारी वोट की कीमत कब दो कोड़ी की हो जाएगी,हम नही कह सकते।