Tuesday, December 28, 2010

मेरे देश को एक और मोहनदास करमचंद गाँधी चाहिए...



घोटालों पर घोटालें सामने आते जा रहे हैं ।महँगाई की मार खा-खा कर भी अपने देश के लोग मूक दर्शक बने अपने घरों से बैठें हैं.....अपने धंधों से थोड़ी -सी फुरसत निकालकर कर कुछ करने की तकलीफ नही उठाना चाहते। जनता देख रही है कि कोई विपक्ष की पार्टी कुछ हंगामा करती रहे और हम घर बैठे सही-गलत का आंकलन करते रहें। नुक्कड़ -चौराहों और दफतरों मे आपस मे बहसियाते रहें और देश को लूटने वाले देश को लूटते रहें।सब बराबर का दुख भोग रहे हैं. लेकिन घर से बाहर निकल कर हम इस भारी तकलीफ में भी कोई मोर्चा या अंदोलन करने की ओर नही बढ़ पा रहे हैं। कारण साफ है आज हममें से किसी को भी किसी एक नेता पर विश्वास नही है...कोई भी ऐसा नेता नही है जो देशहित -जनहित मे देश की जनता के सामने खरा उतरता हो।

दूसरी और देश के विभिन्न संगठन भी ना जानें कानों मे रूई डाल कर कहाँ सोये हुए हैं। उन्हें देश की जनता की तकलीफ बिल्कुल नजर नही आ रही। ऐसा लगता है कि इन सभी ने अपनी-अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी हैं...सभी सूरदास की भूमिका निभा रहें हैं।आप सब  यह देख कर हैरान हो सकते हैं जो इस समय अंधे-बहरों की भूमिकायें निभा रहे हैं ..यदि इन्हें अभी कोई दंगा या तोड़ फोड़ करनी हो तो ये सारे काम छोड़ कर ऐसी -ऐसी तुछ बातॊं पर बवाल मचा सकते हैं जिन बातों का देश की जनता से या किसी की दुख तकलीफ से दूर -दूर तक का कोई नाता नही होता। अपने आप को देश का हितेषी बताने वाले संगठन और राजनैतिक पार्टीयां इस समय एक दूसरे की टाँग खींचने में ....एक दूसरों को नीचा दिखानें की होड़ मे व्यस्त हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि उनकी बात मानी जाये।भले ही यह बात देश की जनता को कोई फायदा पहुँचा सकती हो या नहीं।इस बात से इन्हें कोई सरोकार नही लगता।सभी एक दूसरों को अपने से बड़ा चोर.....अपने से बड़ा भ्रष्टाचारी साबित करनें की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।देश की जनता भी सोच रही है और यह तमाशा  खामोंशी से देखते हुए सोच रही होगी कि इन सब से देश को क्या फायदा मिलने वाला है।किसी के चोर और भ्रष्ट साबित हो जाने से कुछ होने वाला तो है नही। फिर कोई जाँच कमेटी का गठन हो जायेगा...और सालों तक वह कमेटी जाँच करती रहेगी और देश को बेफकूफ बनाती रहेगी और आखिर मे इतना ज्यादा समय जाँच में लगा देंगें कि देश की जनता यह भी भूल जायेगी कि आखिर ये कमेटी किस जाँच के लिये गठित की गई थी। वैसे भी यह हमारे देश का इतिहास रहा है कि ऐसी किसी भी जाँच कमेटी ने आज तक ऐसा कोई फैसला ही नही दिया जिस से किसी अपराधी या दोषी को कोई सजा हुई हो। फिर बार-बार ऐसी जाँच कमेटीयों का गठन कर के देश की जनता का पैसा क्यों बर्बाद कर रही हैं ये देश भक्त पार्टीयाँ!!

यदि हमारे देश की सभी राजनैतिक पार्टीयां एक कानून पास कर दे तो हमारे देश से यह चोर बाजारी व भ्रष्टाचार काफी हद तक दूर हो सकता है।आप सोच रहे होगें कि ऐसा कौन -सा कानून बनाया जा सकता है? क्योंकि हमारे देश के कर्णधार इतने शातिर हैं के वे कोई ना कोई ऐसा तोड़ निकाल ही लेते हैं जिस से काला कारनामा कर के भी बचा जा सके।यदि देश की जनता जागरूक होकर एक ऐसा दबाव इन सभी पार्टीयों पर डाल कर यह कानून बनवा सके कि---

जिस पार्टी के सदस्य देश का धन हड़प करते है...खा जाते हैं वही पार्टी उस धन को देश के खजाने में जमा करवाने के लिये बाध्य होगी।दूसरा-- ऐसे भ्रष्ट नेता या पार्टी के सदस्य को या उसके परिवार के किसी सदस्य को कभी भी देश में किसी पार्टी की सदस्यता नही दी जा सकेगी।उसे चुनाव मे खड़ा होने का कोई अधिकार नही होगा।--
 

देश की जनता व पार्टीयों  के लिये भी ये कानून पास कर दिया जाये कि जो भी कोई देश की संपत्ति को नुकसान पहुँचाएगा ....उसी  को या उसकी पार्टी को उस नुकसान की भरपाई करनी पड़ेगी।

ऐसे मे हर्जाना वसूलनें के लिये जब ऐसे लोगों की संपत्ति जब्त होगी तो ऐसे लोगों की अक्ल ठिकानें पर आ सकती है।क्योंकि देश की जनता को दोषी को सजा होने से कोई लाभ नही होता। इस तरह के नुकसानों का भार अंतत: देश की जनता पर ही पड़ता है।

लेकिन मैं और आप सब जानते हैं कि ऐसा तभी हो सकता है जब देश में फिर से कोई मोहनदास कर्मचंद गाँधी पैदा हो और इस देश की जनता की अगुवाई करते हुए देश का हित साध सके।अब तक इस देश को नकली गाँधीयों से बहुत नुकसान पहुँचा है....इस लिये जब तक कोई असली गाँधी पैदा ना हो जाये हम सब को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।


Saturday, May 29, 2010

तुम हमारी पोल मत खोलो...हम तुम्हारी नही खोलेगें....


जब से सुना है कि बाबरी मस्जिद के दोषीयों को राहत दे दी गई है.....मन मे अजीब सी हलचल मची हुई है.....सोचता हूँ... कही सब पार्टियां इस नीति पर तो नही चल रही कि तुम हमारे दोष मत देखो ......फिर हम तुम्हारे दोष भी नही देखेगें।तुम गोधरा के लिए बवाल मत मचाना हम ८४ के दंगे पर चुप्पी साध कर बैठे रहेगें।अफ्ज़ल को फाँसी की बात ज्यादा जोर दे कर नही उठाएगें...।आज जो नकसलवाद सिर उठाए हँस रहा है.....इसे शुरू होते ही ना  दबाने के क्या कारण हैं ?.......यह सब भी ठीक वैसे ही चल रहा है जैसे कभी पंजाब में चल रहा था.....जिस की आग बाद मे बहुत भड़क गई थी.......उस समय सरकार को उसे काबू मे करने के लिए मात्र  सैनिक कार्यवाही ही  नजर आ रही थी......लेकिन इस नकसलवाद के लिए इस सरकार को सैनिक कार्यवाही करना जरूरी नही लग रहा......यहाँ वे कहती है कि अपने देशवासीयों पर सैनिक कारवाही करना ठीक नही लगता। इस तरह की दोहरी नीतियॊ पर चलकर देश के जनमानस पर क्या असर पड़ता है इस की किसी को परवाह ही नही लगती......।

क्या देश का हित इस मे नही है कि सभी लटकते मामलों पर बिना किसी पक्ष पात के उचित कार्यवाही की जाए ?? ताकी देशवासी सम्मान पूर्वक व निश्चिंत हो कर रह सके।लेकिन मैं समझता हूँ कि दोषी हम लोग भी कम नही हैं। जब चुनाव आता है तो देश हित की जगह अपने हित की चिन्ता मे वोट डालने वाली जनता को अब यह तो सहना ही पड़ेगा....। हम कब सोचते हैं कि देश का हित किस बात में है....क्या कभी हमने यह सोच कर वोट दिया कि देश की जनता को गोधरा या ८४ के कांडो के दोषीयों को जिस सरकार ने सजा नही दी वह देश का हित कर सकेगी? जिस सरकार ने देश द्रोहीयों को फाँसी की सजा होने पर भी ....क्यों अपने फायदों के लिए ऐसे मामले लटकाये जाते हैं ? क्या कभी जनता इस बारे मे सोच कर कभी वोट डालती है।जरा अपने भीतर झाँक कर देखेगे तो खुद ही शर्मसार हो जाएगें।

गरीब जनता थोड़े से लाभ के चक्कर मे पड़ कर अपना वोट ऐसी पार्टी को दे देता है जो उस समय उसे सब्जबाग दिखा कर मूर्ख बनाने मे कामयाब होती है। पार्टीयां नेताओं की  कमजोरीयां व चोरीयां की पोल खोलने की धौंस दे कर उन से अपना उल्लू सीधा करवा रही हैं...और अपनी मनमानी कर रही हैं......मीडिया कभी ऐसे सवाल उठाता ही नही जिस से देश हित की कोई समाज मे लहर पैदा हो।ऐसे लोग ना के बराबर हैं जो ऐसी हिम्मत कर पाते है और उन्हें इस का खामिजा भी भुगतना पड़ता है। कई बार तो ऐसा अभास होता है कि नेता से पूछे गए प्रश्न ठीक वैसे ही हैं जैसे कभी परिक्षा के दिनो मे लीक हुआ कोई पर्चा हो या ऐसा लगता है कि प्रश्न भी उसी ने लिखे हैं जो उत्तर दे रहा है या फिर किसी दबाव के कारण ऐसे प्रश्न पूछे ही जा रहे।यदि ऐसे ही चलता रहा तो देश का भविष्य क्या होगा .....?....यही सोच कर डर लगता है।

दूसरी ओर दुनिया की राजनीति भी अब बहुत अनोखी हो गई है,,,, हो सकता है पहले भी ऐसी ही रही हो......लेकिन हमी ने ध्यान ना दिया हो...।आज  ज्यादातर हर देश की सरकारे पहले खुद ही समस्या को अपने फायदे के लिए पैदा करती है...और उसे हवा देती रहती है।.फिर जब यही आग पूरे जंगल मे फैल कर सब को नजर आने लगती है और जब यह आग  पैदा करने वाले की ओर ही बढ़ने लगती है तो कोई कदम उठाया जाता है....ताकि देश और दुनिया को लगे कि फंला नेता ने कितना महान काम देश हित मे किया है......। आज इसी राजनीति के जरिए दुनिया और देश को बेवकूफ बनाया जा रहा है.....और हम भी बेफकूफ बनते जा रहे हैं......हमे होश ही नही है। 

आज पक्ष और विपक्ष की सरकारें सत्ता मे बने रहने के लिए किसी भी तरह का समझोता करने को तैयार दीख रही हैं...उन्हे देश का हित नही सिर्फ अपना हित ही नजर आ रहा है ....ऐसे मे आज पक्ष और विपक्ष एक ही नीति पर चल रही हैं......
तुम हमारी पोल मत खोलो...हम तुम्हारी नही खोलेगें...

Sunday, February 14, 2010

बुझी चिंगारीयों को फिर से हवा मिल रही है..



 बिना कारण कुछ भी तो नही होता.....समस्याए पैदा ही तभी होती हैं जब कोई कारण हो।..यदि समय रहते उस कारण को दूर कर दिया जाए तो यह अंसभव है कि वह समस्या ज्यादा देर टिक पायेगी।क्यों कि कोई बाहरी दुश्मन तभी किसी देश मे हस्तक्षेप कर सकता है जब उसको वहाँ कोई छिद्र नजर आता है.......लेकिन यहाँ तो छिद्र ही नही पूरा हिस्सा ही गायब है......ऐसे में अपनी गलती को दूसरों के सिर मड़ कर हम पाक साफ नही हो सकते। आज जो पुरानी बुझी चिंगारीया फिर से सुलगती नजर आ रही हैं...उस का कारण भी यही है.....हम ऐसा मौका ही क्यों दे कि कोई हमारे घर मे आग को भड़काने का काम कर सके।अपने घर की अखंडता को कायम रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि सभी को निष्पक्षता के साथ न्याय प्राप्त हो।तभी बाहरी ताकतो को अपने घर मे दखल देने से रोका जा सकेगा।वर्ना उन्हें हमारे घरवालों  को उकसाने का एक बहाना मिल जाएगा।वे कह सकते हैं कि देखो तुम्हारे साथ कैसा सौंतेलापन किया जा रहा है......तुम्हे इस के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। ऐसे मे किसी को बरगलाना कितना आसान होता है यह आसानी से समझा जा सकता है।लेकिन हम क्या कर रहे हैं?....असली कारण को समझे बिना टहनीयों को काटने मे लगे हुए हैं या हमेशा टहनीयों को ही काटते रहते हैं। यदि हम अपने घर को मजबूत कर ले तो बाहर से पत्थर मारने वालों के पत्थर हमारा कुछ भी नही बिगाड़ सकते।इस लिए सब से जरुरी है कि अपने घर वालो को उन के साथ हुई ज्यादतीयों को निष्पक्ष हो कर सुलझाया जाए। उन्हें निष्पक्ष न्याय मिले।हमारे देश की न्याय प्रणाली में कोई खामी नही है.....लेकिन राजनैतिक दखलांदाजी उसे इतना अधिक प्रभावित कर देती है.कि..न्याय मिलने तक, न्याय पाने वाला, न्याय मिलने की उम्मीद ही छोड़ देता है....या फिर जब न्याय मिलता है तो इतने देर से की उसका कोई महत्व ही नही रह जाता।
दूसरी ओर अपने निहित स्वार्थो के कारण ऐसे मामलो को अपने राजनैतिक लाभ के लिए इस्तमाल करने की प्रवृति के कारण देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। देश को जाति और भाषा के नाम पर बाँटना  और अपने वोट बैंक को बनाये रखने की खातिर सही समय पर उचित कदम ना उठाना जैसी  प्रवृति को दूर किए बिना देश सुरक्षित नही रह सकता।अत: जब तक ऐसी बातों पर अंकुश नही लगेगा तब तक बाहरी दुश्मनों को अपने देश के अदंर घुसपैठ करने से रोकने की कोशिश पूरी तरह कामयाब होनी बहुत असंभव लगती है। ऐसी प्रवृतियों के चलते देश के भीतर ही हम ऐसा माहौल तैयार कर रहें है जो अतंत: देश के लिए अहितकर साबित होगा।समय रहते ही सचेत हो जाने मे समझदारी है।

आप सोच रहे होगें कि कवितायें लिखते लिखते यह सब क्या लिखने लगा....लेकिन यह सब लिखने का कारण एक खबर है  जिस कारण यह सब लिख मारा।सुना है कि सिख आतंकवाद को सीमा पार से शह दी जा रही है। यह बयान गहलोत जी ने दिया है।
 इन्ही बातों को पढ़्ते पढ़ते कुछ पंक्तियां मन मे मडरानें लगी ।अत: यहाँ लिख दी।

 बुझी चिंगारीयों को   
फिर से हवा मिल रही है..
जंगलो मे फिर से
जहरीली घास खिल रही है।
मगर यह हो रहा है क्यों...
सोचना ही नही चाहते,
न्याय जिसको मिला ना हो
चोट वही उभर रही है।

मिलता है दुश्मनो को बहाना
अपना बन उकसाने का।
किये अन्याय को अपने
दुनिया से छुपाने का।
ना कोई दोष दो दूजों को
बीज तुमने ही  बोये हैं,
तुम्हे भाता बहुत है खेल ये
सब को सताने का।

समझदारी इसी मे है 
अपने स्वार्थ को छोड़ें।
देश हित सबसे पहले हो
बाकी बातें सब छोड़ें।
हो व्यवाहर ऐसा आपस मे
स्वयं से करते हैं जैसे,
चलो बुरे लोगो के मिलकर
आज दाँत हम तोड़ें।