Wednesday, July 23, 2008

हम सब बेबस हैं



आज कल के हालात को देख कर मैं अपनी ही नजरों में गिर चुका हूँ।समझ नही आता कि कैसे इन घाघ भेड़ियों, मक्कार लोमड़ों से अपने आप को बचा पाऊँगा।जिसे में गाय समझ कर भरोसा करता हूँ वही,अपने फायदे के लिए मेरे मुँह पर थूक कर चला जाता है।मैं बेबस -सा बस अपना सिर धुनता खड़ा रह जाता हूँ।लेकिन यह बात नही कि इस का मैं अकेला शिकार हूँ....आप सभी भी इन्हीं के मारे हैं।

मत दाता बहुत सोच विचार कर अपनें मत का इस्तमाल करता है।जिसे आप वोट डालते हैं,वह नेता आपका प्रिय होता है।वर्ना आप उसे वोट क्यूँकर डालोगे?आप यह मान कर उसे वोट डालते हैं कि वह ईमानदार हैं।आप उसे दूसरों से कुछ ज्यादा ईमानदार पाते हैं तभी तो उसे अपना कीमती वोट देते हो।

आप समझते हैं कि वह आप के विश्वास पर खरा उतरेगा।वह उन पार्टीयॊ के खिलाफ खड़ा होता है जिसे आप पसंद नही करते। लेकिन उस समय क्या महसूस होता है जब वह अपने ही खिलाफ लड़ने वालों के साथ मिल जाता है।सिर्फ इस लिए की उस को कोई आर्थिक लाभ हो रहा है या फिर कोई बड़ा पद मिलने का जुगाड़ नजर आ रहा है।उन से हाथ मिला लेता है।आप आज के माहौल में चाह कर भी कुछ नही कर सकते।आप उस का कुछ भी नही बिगाड़ सकते।आप सोचते हैं कि अगली बार इस को वोट नही देगें। लेकिन क्या आप को पूरा भरोसा है कि जिसे भी आप वोट देगें वह आप के विश्वास को नही तोड़ेगा? कल मौका पड़ने पर वह भी वही सब करेगा,जो आज आपके प्रिय नेता कर रहे हैं।आज आप के मत की कीमत दो कोड़ी की भी नही है।जब एक नेता के पाला बदलनें से आप का दिया मत ही आप के अपनें खिलाफ हो जाता है तो आप क्या कर सकते हैं ? यहाँ उन पार्टीयॊं की बात हो रही है जो अपनी विचार धारा को सिर्फ इस लिए तिलांजली दे देते हैं क्यूँ कि वह सत्ता का मोह नही छोड़ सकते।उन्हें , अपने देश,समाज की सेवा नही ,अपनी सेवा करनी हैं। अपनें लोगों रिश्तेदारों की सेवा करनी है।

क्या ऐसी राजनिति करने वाले नेता या पार्टीयां कभी देश का भला कर सकेगी ? क्या हम बेबस हो कर सिर्फ देखते रहेगें ?

15 comments:

  1. हर तरफ इसी बेबसी और घुटन का माहौल है.

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  2. आज के शर्मनाक हालत का अच्छा चित्रण है. प्रजातंत्र दूसरी कई व्यवस्थाओं से बेहतर होने के बावजूद हमारे प्रजातंत्र में बहुत से सुधारों की आवश्यकता है.

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  3. बेहद शर्मनाक हालात हैं, अब उम्मीदें नेताओं की नई पौंध पर है बस


    सजीव सारथी
    www.podcast.hindyugm.com

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  4. है यह वास्तविकता । पर हर समय कुछ ऐसा ही रहा है प्रकारांतर से । हमें ऐसी ही स्थितियों से निकलना होता है - संघर्ष करके । अन्यथा जीवन में आस्वाद कहाँ बच जाता है...

    क्या आप वही परमजीत बाली हैं जो हिंदी के बड़े आलोचक हुआ करते थे !

    www.srijangatha.com

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  5. शर्म आ रही है खुद पर (हमारी जनता पर) जो ऐसे नेता चुन कर लाये.हमें नहीं पता था कि हम व्यापारी चुन कर ला रहे हैं जिन्हें सिर्फ़ अपना मुनाफ़ा दिखता है,देश की जनता और समस्यायें नहीं.

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  6. aap ne mere blog par nazarein inayat kiya, Shukriya.

    Magar, aap ke baare me isase jyada kya kahun.......aap to Gaagar me Saagar hain.

    ...Ravi

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  7. बाली साहब , मुझे लगता है ये हमारी (जनता की)
    लाचारी या मजबूरी नही है ?
    लानत है इन पर नेताओं पर !
    चुप बैठने से कुछ भी
    आवाज उठाते रहना अच्छा ! बहुत
    शुभकामनाए !

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  8. परम जीत जी असली हल तो यह हे जब भी वोट दालने का समय आये, पहले सभी उमीद वारो के बारे पता कर ले , जो अपराधिक प्रवति को हो सब से पहले उसे अपने दिमाग से हटाये, फ़िर बाकी के भी भुत काल को देखे, दल बदलू,पार्टी बदलू सब आउट, फ़िर जो बचे, उसे वोट दे, ओर जनता को हक हे जो वादे म्न्त्री करे , पहले वो पुरे करवाओ, वरना धरने, ओर हडताल( बिना तोड फ़ोड, बिना बदमाशो के)ओर सरकार को घुटने टेकने पर मजबुर कर दो, जब हम जागे गे, तभी हमारे बच्चे जी पाये गे , जागो जागो ओर इन हरामियो को भागने पर मजबुर कर दो

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  9. bhut sahi. aesa hi mahol hai har jagah. aap bhut badhiya likhte hai. jari rhe.

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  10. पहली बार इस तरफ आना हुआ .लेकिन अच्छा ही हुआ, वरन कई रचनात्मक सच्ची अभिव्यक्तियों से अनजान रह जाता.सरसरी कई चीज़ें नज़र से गुजरीं , बहुत बढया प्रयास है.कवितायेँ मर्म को छूती हैं.
    www.hamzabaan.blogspot.com पर पढें [red]खतरे में इसलाम नहीं [/red] और www.shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com पर [red] आदमी... [/red]

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  11. बहुत खूब कहा आपने !

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  12. मेरे ख्याल से हम अंधे में काने राजा को चुनते हैं।वोट देते समय भी हमें ये मालूम रहता है, पर क्या करें विकल्पहीनता है।

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  13. loktantra mein yeh sab bogus he
    regards

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  14. शायद इस का एक ही हल है....
    जिस तरह चुन लेने का हक़ है...
    उसी तरह जनता को अपने प्रतिनिधि को वापिस बुलाने का हक़ भी मिलना चाहिए ....
    जैसे कोई नेता अगर अपने क्षेत्र से चुना गया किसी और पार्टी से, और बाद में अपने फायदे के लिए दूसरी पार्टी के लिए, या किसी भी तरह के लाभ के लिए ग़लत काम में लिप्त हो गया.... तो जनता उसे वापिस बुला सके, चाहे तो वोटिंग हो या कुछ और तरीके....
    नेता सोचते है, की अगर हटा भी दिए गए तो कुछ वक्त बाद चुनाव भी हो जायेंगे....
    ऐसे न हो, अगर ५ साल का कार्यकाल है, तो फ़िर अगर नेता जी १ साल बाद बुला लिए गए.. फ़िर भी चुनाव ५ साल बाद ही हो... बाकी के ४ साल वो सीट खली रहने चाहिए और केंद्रीय या राज्यस्तर पर राज्यपाल के अधीन रहे वो क्षेत्र, वैसे भी नेता जी सिर्फ़ चुनाव के समय पर वोट लेने ही आते है....काम तो बाबू लोगों ने करना होता है.. नेता जी तो काम में अड़ंगे ही डालते है....

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