Sunday, February 14, 2010

बुझी चिंगारीयों को फिर से हवा मिल रही है..



 बिना कारण कुछ भी तो नही होता.....समस्याए पैदा ही तभी होती हैं जब कोई कारण हो।..यदि समय रहते उस कारण को दूर कर दिया जाए तो यह अंसभव है कि वह समस्या ज्यादा देर टिक पायेगी।क्यों कि कोई बाहरी दुश्मन तभी किसी देश मे हस्तक्षेप कर सकता है जब उसको वहाँ कोई छिद्र नजर आता है.......लेकिन यहाँ तो छिद्र ही नही पूरा हिस्सा ही गायब है......ऐसे में अपनी गलती को दूसरों के सिर मड़ कर हम पाक साफ नही हो सकते। आज जो पुरानी बुझी चिंगारीया फिर से सुलगती नजर आ रही हैं...उस का कारण भी यही है.....हम ऐसा मौका ही क्यों दे कि कोई हमारे घर मे आग को भड़काने का काम कर सके।अपने घर की अखंडता को कायम रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि सभी को निष्पक्षता के साथ न्याय प्राप्त हो।तभी बाहरी ताकतो को अपने घर मे दखल देने से रोका जा सकेगा।वर्ना उन्हें हमारे घरवालों  को उकसाने का एक बहाना मिल जाएगा।वे कह सकते हैं कि देखो तुम्हारे साथ कैसा सौंतेलापन किया जा रहा है......तुम्हे इस के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। ऐसे मे किसी को बरगलाना कितना आसान होता है यह आसानी से समझा जा सकता है।लेकिन हम क्या कर रहे हैं?....असली कारण को समझे बिना टहनीयों को काटने मे लगे हुए हैं या हमेशा टहनीयों को ही काटते रहते हैं। यदि हम अपने घर को मजबूत कर ले तो बाहर से पत्थर मारने वालों के पत्थर हमारा कुछ भी नही बिगाड़ सकते।इस लिए सब से जरुरी है कि अपने घर वालो को उन के साथ हुई ज्यादतीयों को निष्पक्ष हो कर सुलझाया जाए। उन्हें निष्पक्ष न्याय मिले।हमारे देश की न्याय प्रणाली में कोई खामी नही है.....लेकिन राजनैतिक दखलांदाजी उसे इतना अधिक प्रभावित कर देती है.कि..न्याय मिलने तक, न्याय पाने वाला, न्याय मिलने की उम्मीद ही छोड़ देता है....या फिर जब न्याय मिलता है तो इतने देर से की उसका कोई महत्व ही नही रह जाता।
दूसरी ओर अपने निहित स्वार्थो के कारण ऐसे मामलो को अपने राजनैतिक लाभ के लिए इस्तमाल करने की प्रवृति के कारण देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। देश को जाति और भाषा के नाम पर बाँटना  और अपने वोट बैंक को बनाये रखने की खातिर सही समय पर उचित कदम ना उठाना जैसी  प्रवृति को दूर किए बिना देश सुरक्षित नही रह सकता।अत: जब तक ऐसी बातों पर अंकुश नही लगेगा तब तक बाहरी दुश्मनों को अपने देश के अदंर घुसपैठ करने से रोकने की कोशिश पूरी तरह कामयाब होनी बहुत असंभव लगती है। ऐसी प्रवृतियों के चलते देश के भीतर ही हम ऐसा माहौल तैयार कर रहें है जो अतंत: देश के लिए अहितकर साबित होगा।समय रहते ही सचेत हो जाने मे समझदारी है।

आप सोच रहे होगें कि कवितायें लिखते लिखते यह सब क्या लिखने लगा....लेकिन यह सब लिखने का कारण एक खबर है  जिस कारण यह सब लिख मारा।सुना है कि सिख आतंकवाद को सीमा पार से शह दी जा रही है। यह बयान गहलोत जी ने दिया है।
 इन्ही बातों को पढ़्ते पढ़ते कुछ पंक्तियां मन मे मडरानें लगी ।अत: यहाँ लिख दी।

 बुझी चिंगारीयों को   
फिर से हवा मिल रही है..
जंगलो मे फिर से
जहरीली घास खिल रही है।
मगर यह हो रहा है क्यों...
सोचना ही नही चाहते,
न्याय जिसको मिला ना हो
चोट वही उभर रही है।

मिलता है दुश्मनो को बहाना
अपना बन उकसाने का।
किये अन्याय को अपने
दुनिया से छुपाने का।
ना कोई दोष दो दूजों को
बीज तुमने ही  बोये हैं,
तुम्हे भाता बहुत है खेल ये
सब को सताने का।

समझदारी इसी मे है 
अपने स्वार्थ को छोड़ें।
देश हित सबसे पहले हो
बाकी बातें सब छोड़ें।
हो व्यवाहर ऐसा आपस मे
स्वयं से करते हैं जैसे,
चलो बुरे लोगो के मिलकर
आज दाँत हम तोड़ें।

30 comments:

  1. बुझी चिंगारीयों को
    फिर से हवा मिल रही है..
    जंगलो मे फिर से
    जहरीली घास खिल रही है।
    मगर यह हो रहा है क्यों...
    सोचना ही नही चाहते,
    न्याय जिसको मिला ना हो
    चोट वही उभर रही है।

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  2. समय रहते ही सचेत हो जाने मे समझदारी है।

    -बहुत सही कह रहे हैं आप!!


    कविता तो दिल में उतर गई सीधे..वाह परमजीत भाई..क्या कहने!!

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  3. बुझी चिंगारीयों को
    फिर से हवा मिल रही है..
    जंगलो मे फिर से
    जहरीली घास खिल रही है।
    मगर यह हो रहा है क्यों...
    सोचना ही नही चाहते,
    न्याय जिसको मिला ना हो
    चोट वही उभर रही है।

    सारगर्भित ।

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  4. आप के लेख से सहमत है जी

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  5. paramjit bhai....realy..
    nothing to say

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  6. कांग्रेस की फूट डालो और राज करो की निती और न जानेक्या-क्या गुल खिलायेगी

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  7. वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  8. इंकलाब जिन्दाबाद

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  9. आज के सन्दर्भ में एक बहुत अच्छी रचना |बधाई
    आशा

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  10. बहुत ही सुन्दर पोस्ट
    आभर ...............................

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  11. बुझी चिंगारीयों को
    फिर से हवा मिल रही है..
    जंगलो मे फिर से
    जहरीली घास खिल रही है....

    सवालों की चिंगारियां भी जबरदस्त हैं .......!!

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  12. kitni baten samjha di ek chhoti si baat se

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  13. bharat ka map theek lagaiye pls !!!!

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  14. desh ke sammaan me, desh ki ekjutataa ke liye, deshprem me doobe sabhi tarah ke aapke bhaav kaabile taarif hain.

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  15. बाली जी,
    लगाया हुआ नक्शा गलत है, कृपया बदल डालिए.

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  16. नक्शा बदल लिआ है....आपका धन्यवाद।

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  17. बुझी चिंगारीयों को
    फिर से हवा मिल रही है..
    जंगलो मे फिर से
    जहरीली घास खिल रही है।
    ......पंक्तियों ने दिल छू लिया, बहुत सुंदर रचना.

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  18. सुंदर गद्य... चिंतन और सुंदर पद्य ... बहुत खूब ।

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  19. भाई जी! हमारे संविधान के नीति निर्देशक सिध्दांतों में यह व्यवस्था दी गई कि देश के समस्त भूभाग का विकास समान रूप से किया जाय । परन्तु इस सिध्दांत की घोर उपेक्षा हुई। परिणाम सारा देश भुगत रहा है। आपने एक सच्चाई का खुलासा किया है। आपके विचार आँख खोलने वाले हैं। आपको साधुवाद!

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  20. व्यवस्था की विवशता के साथ गहरा आत्म मंथन है .साधुवाद

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  21. कविता बेजोड़ लगी ......... आप बेहतरीन लिखते हैं

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  22. Bali ji, kavita to thi hi achook!
    Bina mausam barsaat ki tarah deshbhakti kee baat kee hai aapne!
    Aajkal 'out of fashion' hai ye sab! Lekin mujhe to behad bhaaya!
    Jai Hind!

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  23. bahut hi umda post. ek sarthak aur prabhavshali sandesh deti hui.

    समझदारी इसी मे है
    अपने स्वार्थ को छोड़ें।
    देश हित सबसे पहले हो
    बाकी बातें सब छोड़ें।
    हो व्यवाहर ऐसा आपस मे
    स्वयं से करते हैं जैसे,
    चलो बुरे लोगो के मिलकर
    आज दाँत हम तोड़ें।
    poonam

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  24. काश आपकी ये बात दुनिया समझ सके... बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  25. YOUR THINKING IS REALY GREAT AND ALL INDIANS, POLITICAL LEADER, EVERY BODY MUST FOLLOW THIS, I LOVE INDIA, INDIA IS GREAT

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