मेरे विचार से हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत मतलब निकाल रहें हैं। कल से एक पोस्ट पर यह आग्रह किया जा रहा है कि आप करीम जी,के समर्थन में वहाँ की सरकार का विरोध करें। उन की बात जायज है...लेकिन जहाँ तक मेरे व्यक्तिगत विचार हैं कि विरोध करनें के लिए किसी को किसी के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करना गलत बात है...इस से उस धर्म को माननें वालों को बहुत ठेस पहुँचती है। जिस कारण धार्मिक उद्दमाद भड़कनें की ही संम्भावना अधिक रहती है।..इस से कट्टरवादियों को सीधे-साधे लोगों को भड़काने का ही अवसर भी हम प्रदान कर देते हैं। जो बहुत खतरनाक व भयानक होता है। क्यूँ कि करीम जी स्वयं एक मुसलमान हैं...यदि उन्हें इस्लाम में कुछ खामियां नजर आती हैं तो वह किसी दूसरे धर्म को अपना कर अपना विरोध दरज करा सकते थे। क्यूँ कि सब को अपने ढंग से चलाना मुश्किल ही नही..नामुम्किन भी है।....यदि हम इन धार्मिक विरोधों को जायज ठहराते हैं तो फिर हिन्दू,सिख,ईसाई या किसी भी धर्म के धार्मिक मामलों को भी हमें जायज ठहराना होगा। ऐसा करनें पर कैसे बखेड़े खड़े होगें....यह बतानें की जरूरत नही है...सभी समझ सकते हैं।
शायद मेरे विचार पढ़्नें के बाद कुछ लोग तर्क दे कि समाज के प्रति हमारा कुछ फर्ज बनता है ..सो हम समाज को सही दिशा देना चाहते हैं।....उन से कहना चाहूँगा कि वे समाज को सही दिशा अवश्य दे...लेकिन धर्म से ट्क्कर लेकर खोखली पब्लिसीटी लूटने की बजाए..अपनें आप को ही बदल कर विरोध करना आरंभ करें जिस से समाज की व धर्म की बुराईयां( जैसा के मेरे कुछ भाईयों को नजर आती हैं) अपने आप धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
किसी ने कहा है--
जो अच्छा लगे
उसे अपना लो
जो बुरा लगे उसे जानें दो
हरिक बात के मानें दो।
मेरे विचारों से यदि कोई आहत होता है तो मैं क्षमा चाहूँगा। यहाँ मैनें मात्र अपनी व्यक्तिगत राय आप के समक्ष रखी है। मैं यह नही चाहता कि आप मेरी बात को मान ही लें। यदि आप को मेरी बात सही लगती है तो उसे अपनाएं, यदि बुरी लगती है तो उसे मेरी कही बातों को भूल जाएं।
हाँ एक बात अवश्य कहूँगा---करीम भाई को क्षमादान अवश्य मिलना चाहिए।
अंत मैं मेरी और से सभी चिट्ठाकारों को दिपावली की बहुत-बहुत बधाई!!!
शायद मेरे विचार पढ़्नें के बाद कुछ लोग तर्क दे कि समाज के प्रति हमारा कुछ फर्ज बनता है ..सो हम समाज को सही दिशा देना चाहते हैं।....उन से कहना चाहूँगा कि वे समाज को सही दिशा अवश्य दे...लेकिन धर्म से ट्क्कर लेकर खोखली पब्लिसीटी लूटने की बजाए..अपनें आप को ही बदल कर विरोध करना आरंभ करें जिस से समाज की व धर्म की बुराईयां( जैसा के मेरे कुछ भाईयों को नजर आती हैं) अपने आप धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
किसी ने कहा है--
जो अच्छा लगे
उसे अपना लो
जो बुरा लगे उसे जानें दो
हरिक बात के मानें दो।
मेरे विचारों से यदि कोई आहत होता है तो मैं क्षमा चाहूँगा। यहाँ मैनें मात्र अपनी व्यक्तिगत राय आप के समक्ष रखी है। मैं यह नही चाहता कि आप मेरी बात को मान ही लें। यदि आप को मेरी बात सही लगती है तो उसे अपनाएं, यदि बुरी लगती है तो उसे मेरी कही बातों को भूल जाएं।
हाँ एक बात अवश्य कहूँगा---करीम भाई को क्षमादान अवश्य मिलना चाहिए।
अंत मैं मेरी और से सभी चिट्ठाकारों को दिपावली की बहुत-बहुत बधाई!!!
आपकी बात भी विचारणीय है
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
विरोध करनें के लिए किसी को किसी के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करना गलत बात है इस मामले मे आपके विचारो से मै हूँ. धार्मिक आस्था के मसले पर हस्तक्षेप करना किसी प्रकार से उचित नही कहा जा सकता | सामयिक मसले पर आपका लेख सराहनीय है |
ReplyDeletesahmati hai aapki raay se.
ReplyDeletewaise yu hi thodi na kaha jata hai ki ham aaj duniya ke sabse bade loktantr ka ek hissa hain. loktantr ki pahli shart hoti hai abhivyakti ki svattantrata.
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