Wednesday, March 12, 2008

यह सिल सिला कहाँ जा कर थमेगा...

आज टी वी देखते हुए समाचारों में तिब्बती महिलाओं का प्रदर्शन देख रहा था। जहाँ उन निह्त्थी महिलाओं पर हमारे बहादुर सिपाही लाठीयां बजा रहे थे।कुल मिला कर छत्तिस महिलाएं थी ।जो सिपाहीयों की मार से चीख-चिल्ला रही
थी,लेकिन हमारे बहादुर सिपाहीयों को उन पर जरा भी रहम नही आ रहा था...महिलाओं में बीस साल से लेकर साठ-पैसंठ साल तक की महिलाएं शामिल थी। तिब्बतियों द्वारा हर साल १२ मार्च को अपनी आजादी के लिए यह प्रदर्शन किया जाता है यह बात हमारी सरकार भी जानती है। लेकिन फिर भी वहाँ पर महिला पुलिस नही भेजी गई...क्या हमारी सरकार चीन को खुश करने में लगी है।...क्या आज इंसानियत के प्रति हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं।
हम सब कुछ देख कर भी क्यों चुप रह जाते हैं?शायद आज कल सभी के लिए राजनैतिक फायदों के सामनें इन बातों का कोई मुल्य नही रह गया है।इसी लिए सच का पक्ष लेनें में भी हम तथा हमारी सरकारें हिचकिचाती है।
आखिर यह सब ऐसे ही चलता रहा तो यह सि्लसिला कहाँ जा कर थमेगा खुदा जानें?

11 comments:

  1. थमेगा नहीं, यह चलता रहेगा । और क्यों ना बरसाई जाएँ तिब्बती महिलाओं पर लाठियाँ ? हम तो प्रगतिवादी कम्युनिस्ट सोच के हैं । चीन ही हमारा देश है । तिब्बत ? वह क्या है ? भारत का ही हित जब चीन के हित के बाद आए तो तिब्बत क्या चीज़ है ?
    घुघूती बासूती

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  2. ant to sabkaa hotaa hai isliye iska bhee hoga magar afsos ki ye baatein ab samaaj ko drawit nahin kartee.

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  3. परमजीत भाई. इंसानियत ऐसे ही रो रही है चहुंओर

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  4. सिलसिला तो जब थमे जब इंसानियत के भेष में इन सरकारी लोलुप लुटेरों का कहीं ठहराव हो। दिन पर दिन यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है।

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  5. घुघुती बासूती के विचारों से मैं सहमत हूँ
    दीपक भारतदीप

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  6. आज तो इन्सान जीवित होते हुए सोये हुए के समान है। लोग टीबी तक कुछ कहने से गुरेज करते रहते है जब तक ख़ुद पर कोई मुश्किल न आए। क्रोध नाम की चीज है तो अभी भी परन्तु वह अपने दुःख के लिए है दूसरे के दुःख के लिए नही रह गया है। किसी को हम ख़ुद चौराहे पर मार खाते हुए देखते हैं परन्तु न तो हमें क्रोध आता है न दया। अगर दया आती भे है तो वह किसी काम की नही है। इसलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार हमें कम से कम दूसरों के लिए तो गुस्सा करना ही चाहिए।

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  7. आज तो इन्सान जीवित होते हुए सोये हुए के समान है। लोग तब तक कुछ कहने से गुरेज करते रहते है जब तक ख़ुद पर कोई मुश्किल न आए। क्रोध नाम की चीज है तो अभी भी परन्तु वह अपने दुःख के लिए है दूसरे के दुःख के लिए नही रह गया है। किसी को हम ख़ुद चौराहे पर मार खाते हुए देखते हैं परन्तु न तो हमें क्रोध आता है न दया। अगर दया आती भे है तो वह किसी काम की नही है। इसलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार हमें कम से कम दूसरों के लिए तो गुस्सा करना ही चाहिए।

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  8. JAB TAK HUM SAB EK NAHI HONGE TAB TAK YEH SIL SILE CHALTE RAHNGE

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  9. JAB TAK HUM SAB EK NAHI HONGE TAB TAK YEH SIL SILE CHALTE RAHNGE

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